उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी लागू हो गया है. इसके बाद हिंदू, मुसलमान, ईसाई समुदाय के लिए शादी, तलाक, संपत्ति बंटवारा समेत कई चीजों में बदलाव हो गया है. अब अलग-अलग धर्म के पर्सनल लॉ की जगह एक समान कानून लागू होगा. लिहाजा, अब मुस्लिम पुरुषों को एक से ज्यादा शादी की इजाजत नहीं होगी. वहीं, निकाह हलाला, इद्दत भी गैरकानूनी हो गया है. बता दें कि उत्तराखंड में मुस्लिम ही नहीं कई ऐसे हिंदू समुदाय हैं, जो एक से ज्यादा शादियां करते हैं. अब उन पर यूसीसी का क्या असर होगा? वहीं, ये सवाल भी उठा कि अगर मुस्लिम महिलाएं तलाक लेती हैं तो क्या वे सीआरपीसी की धारा-125 के तहत मेंटनेंस चार्ज पाने की हकदार होंगी?
उत्तराखंड की जौनसारी जनजाति में महिलाओं को एक से ज्यादा पुरुषों के साथ शादी करने की आजादी है. वहीं, भोटिया में पुरुषों के बहुविवाह की परंपरा है. सवाल उठता है कि यूसीसी लागू होने के बाद इन जनजातियों में शादी की परंपरागत व्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा? उत्तराखंड की जनजातियों में जौनसारी, थारू, राजी, बुक्सा और भोटिया जनजाति प्रमुख समूह हैं. उत्तराखंड के देहरादून जिले में लाखामंडल गांव की जौनसारी जनजाति के लोग आज भी अपनी धार्मिक परंपरा के चलते पॉलीऐन्ड्री विवाह करते हैं. आसान भाषा में समझें तो यहां महिलाओं के एक से ज्यादा पुरुषों के साथ शादी करने की परंपरा है.
जनजातियों को क्यों मिलेगी बहुविवाह की छूट?
भोटिया जनजाति में महिलाओं को तो बहुविवाह की छूट नहीं है, लेकिन पुरुषों को एक से ज्यादा शादियां करने की आजादी है. चूंकि समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी के दायरे से उत्तराखंड की जौनसारी, थारू, राजी, बुक्सा और भोटिया जनजातियों को बाहर रखा गया है. साफ है कि वे अपनी बहुविवाह की परंपराओं को आज ही की तरह जारी रख सकते हैं. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में मुस्लिमों में सबसे ज्यादा बहुविवाह होता है. आईआईपीएस की स्टडी में बताया गया था कि भारत में होने वाले कुल बहुविवाह में मुसलमानों की संख्या 1.9 फीसदी है. इसके बाद अन्य धार्मिक समुदाय आते हैं, जिनकी संख्या 1.6 फीसदी है. वहीं, 1.3 फीसदी के साथ हिंदू तीसरे नंबर पर आते हैं.
जौनसारी जनजाति में महिलाओं के एक से ज्यादा पुरुषों के साथ शादी करने की परंपरा है.
उत्तराखंड की सबसे बड़ी जनजाति कौन है?
जनसंख्या के नजरिये से थारू जनजाति उत्तराखंड का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है. बुक्सा और राजी जनजाति आर्थिक, शैक्षिक व सामाजिक रूप से अन्य जनजातियों के मुकाबले काफी गरीब तथा पिछड़ी है. लिहाजा, इन दोनों जनजातियों को आदिम जनजाति समूह की श्रेणी में रखा गया है. साल 1967 में उन्हें अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था. उत्तराखंड की कुल जनजातीय आबादी में थारू जनजाति की आबादी 33.4 फीसदी है. इसके बाद जनसारी जनजाति 32.5 फीसदी आबादी के साथ दूसरा सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है. वहीं, बुक्सा जनजाति इसमें 18.3 फीसदी आबादी का योगदान करती है. उत्तराखंड के जनजातीय समुदाय में भोटिया 14.2 फीसदी आबादी के साथ सबसे छोटी जनजाति है.
बहुविवाह पर जनजातियों का अपना कानून भी नहीं
स्वतंत्र पत्रकार और मीडिया ट्रेनर राजेश जोशी ने बताया कि उत्तराखंड में कई जनजातियों में पॉलीगेमी और पॉलीएंड्री की परंपरा है. इसको लेकर उनका अपना कोई विशेष कानून भी नहीं है. जनजातियों में एक से ज्यादा महिलाओं या पुरुषों से शादी करना दो लोगों के बीच का मामला माना जाता है. वे एक विवाह या बहुविवाह में से चुनाव करने के लिए स्वतंत्र हैं. उन्होंने बताया कि भोटिया जनजाति में लड़के और लड़कियां अपनी मर्जी के मुताबिक शादियां करते हैं. कई बार वे बिना शादी किए है एकदूसरे के साथ रहना शुरू कर देते हैं. वह कहते हैं कि गैर-जनजातीय समुदायों की परिभाषा के आधार पर जनजातीय समुदायों में विवाह की परंपराओं को नहीं परखा जा सकता है.
उत्तराखंड की जनजातियों को यूसीसी के दायरे से बाहर रखा गया है.
जारी रहेगी उत्तराखंड में बहुविवाह की परंपरा!
राजेश जोशी ने बताया कि उत्तराखंड की थारू जनजाति में महिलाओं को ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं. ये मातृसत्तात्मक समुदाय है. यहां महिलाओं के एक से ज्यादा पति होना बहुत ही आम है. चूंकि उत्तराखंड की तमाम जनजातियों को समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखा गया है. लिहाजा, वे आगे भी अपनी वैवाहिक परंपराओं के मुताबिक बहुविवाह करने के लिए स्वतंत्र रहेंगे. हालांकि, वह ये भी कहते हैं कि अब पॉलीगेमी या पॉलिएंड्री का चलन पहले जितना नहीं है. अब कभी-कभार ही इस तरह के मामले सामने आते हैं.
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Tags: Marriage Law, Muslim Marriage, Tribal cultural, Uniform Civil Code, Uttarakhand News Today
FIRST PUBLISHED : February 14, 2024, 20:59 IST