रमेश चंद्र कथाकार और गीतकार हैं. इन दिनों मायानगरी में सक्रीय हैं. साहित्यिक और सामाजिक मुद्दों पर नियमित लेखन करते रहते हैं. साहित्य सृजन के लिए रमेश चंद्र को अक्षर श्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है. हाल ही में उनका नया कहानी संग्रह ‘रुकना नहीं राधिका’ प्रकाशित हुआ है. सोशल मीडिया पर इस संग्रह की काफी चर्चा हो रही है. प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह में कुल 20 कहानियां हैं.
रमेश चंद्र ने ‘रुकना नहीं राधिका’ के माध्यम से समाज के गरीब-निम्न वर्ग की उन लड़कियों की तस्वीर को समाज के सामने प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जो बहुत कम संसाधनों में दिन-रात कड़ी मेहनत करते हुए, अपने परिवार को संभालते हुए अपने सपने पूरे करती हैं. और अपने सपनों का साकार करने के साथ-साथ अपने समाज और देश का नाम रौशन करती हैं.
पेशे से अध्यापक निधि चौधरी ‘रुकना नहीं राधिका’ के बारे में लिखती हैं कि गरीबी और सामाजिक पिछड़ेपन को चुनौती देती रमा और राधिका की यह कहानी समाज में व्याप्त रूढ़ियों से लड़कर आत्मबल के भरोसे आगे बढ़ने की कहानी है. पति को खो चुकी रमा अपनी बेटी राधिका को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अंतिम क्षण तक संघर्ष करती है और बेटी को भी प्रेरित करने के लिए अपने हिस्से की सारी कोशिश करती है.
दरअसल शीर्षक कहानी उस गरीब लड़की की संघर्ष गाथा है जो पुलिस में भर्ती होने की तैयारी कर रही है. राधिका ने लिखित परीक्षा तो पास कर ली, अब उसे फिजिकल एग्जाम देना है. फिजिकल एग्जाम में लंबी दौड़ की तैयारी कर रही है राधिका. लेकिन ना तो उसके पास जूते हैं और ना ही शरीर दौड़ के लिए फिट कपड़े.
निधि चौधरी कहानी के बारे में लिखती हैं कि समाज में व्याप्त रुढ़ियां राधिका को डराती जरूर हैं किन्तु उससे पार पा वह संघर्ष का रास्ता चुनती है और शिक्षा को अपना हथियार बनाकर त्याग और आत्मबल के भरोसे अंततः समाज में अपना स्थान सुनिश्चित करती है.
‘रुकना नहीं राधिका’ शीर्षक यह कहानी अपने लक्ष्य को पाने के लिए, समाज में अपनी और अपने बेटी की प्रतिष्ठा को स्थापित करने की कोशिश का एक शानदार उदाहरण है. आज भी समाज में आधी आबादी को अपने लिए संघर्ष के लिए जूझना इस बात का प्रमाण है कि हम अभी तक एक स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं कर पाए हैं.
इस कहानी के एक पात्र बूढ़ा चौकीदार द्वारा राधिका को दौड़ में प्रोत्साहित करना इस बात का उदाहरण है कि देर से ही सही पुरुष समाज भी महिलाओं के संघर्ष को सम्मान देने में आगे आ रहा है और इसमें सहयोगी भी बनने लगा है. यह कहानी आधी आबादी के सपनों को और उसके संघर्ष को समर्पित है. जो हमें एक कटु सत्य से तो परिचित कराती ही है साथ ही एक सुनहरे भविष्य के प्रति आशा भी जगाती है.
रमेश चंद्र ने कहानी के माध्यम से स्त्रियों के संघर्ष का बड़ा ही मार्मिक और सजीव वर्णन किया है. पैरों से खून बह रहा है और ढीली पैंट के साथ राधिका की नंगे पैर दौड़ का चित्रण न केवल उसके शारीरिक दर्द को प्रकट करता है, बल्कि उसकी अदम्य भावना और आजीविका की सख्त जरूरत को भी दर्शाता है. यह पुस्तक मानवीय भावना के लचीलेपन की याद दिलाती है और पाठकों को इस संदेश से प्रेरित करती है कि “जहां चाह, वहां राह.”
‘रुकना नहीं राधिका’ कहानी संग्रह की अगली कहानी है- वह कौन थी? इस कहानी में मायानगरी का नंगा सच दिखाया है. यहां असली आंसू और चीख-पुकार भी किसी सीन का हिस्सा ही लगती है. इनके अतिरिक्त लिफ्टवाली लड़की, सियाबर सिपाही, हिंदुस्तान बैंड, लछमिनिया, यार था वह मेरा, ये दिन भी बदलेंगे आदि कहानियां पठनीय हैं.
पुस्तक में आंचलिक शब्दावली पाठकों को उस गांव,ठौर और दिशा में ले जाती है जहां इसे शब्दों के सांचे में ढालकर तैयार किया गया है. रमेश चंद्र की इस कहानी में ग्रामीण संघर्ष तो है ही साथ ही गांव की ठंडी बयार और मिट्टी की सोंधी महक भी है. रमेश ने बड़ी ही सरल भाषा में एक गरीब लड़की की पीड़ा को बयान किया है.
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FIRST PUBLISHED : April 7, 2024, 14:28 IST