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- Delhi Noida Border Farmers Protest Update; Kisan Andolan | Samyukt Kisan Morcha (SKM)
नई दिल्ली7 मिनट पहले
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गुरुवार 8 फरवरी को किसानों ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली जाने का ऐलान किया था। लेकिन उन्हें नोएडा दिल्ली बॉर्डर पर रोक दिया गया।
नोएडा प्राधिकरण से अपनी जमीनों का मुआवजा मांग रहे किसानों ने सरकार को दो दिन का अल्टीमेटम दिया है। भारतीय किसान परिषद के नेता सुखवीर खलीफा ने शनिवार (10 फरवरी) को कहा कि अगर 12 फरवरी तक उनकी मांगें नहीं मानी गई तो वे फिर प्रदर्शन करेंगे। इससे पहले किसानों ने 8 फरवरी को दिल्ली बॉर्डर पर प्रदर्शन किया था।
सुखवीर खलीफा ने कहा कि 8 फरवरी को जब हमने दिल्ली तक मार्च निकाला था, तो नोएडा पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह ने हमें भरोसा दिलाया था कि 12 फरवरी तक हमारी मांगों को लेकर कमेटी गठित कर दी जाएगी। हमने उनकी बात इस शर्त पर मानी थी कि कमेटी के गठन में जरा भी देरी हुई तो हम दिल्ली तक मार्च फिर से शुरू करेंगे।
किसानों के प्रदर्शन की वजह?
दरअसल, 1997 से 2014 के बीच 81 गावों से नोएडा शहर को बसाने के लिए जमीनें अधिग्रहित हुई थीं। इस दौरान सिर्फ 16 गांव के किसानों को मुआवजा और 5 प्रतिशत विकसित प्लॉट दिए गए। बाकी गावों के किसानों ने कहा कि उन्हें मुआवजा नहीं मिला।
2019 से इस मामले को लेकर नोएडा के कई किसान प्राधिकरण के खिलाफ प्रदर्शन करते आ रहे हैं। गुरुवार को किसानों ने दिल्ली पहुंचने का फैसला किया था। लेकिन उन्हें नोएडा-दिल्ली चिल्ला बॉर्डर पर रोक दिया गया। यहां 5 घंटे के प्रदर्शन के बाद उन्हें कमेटी बनाने का आश्वसन दिया गया था। जिसके बाद वे वापस लौट गए।
तस्वीरों में देखिए किसानों का प्रदर्शन…
गुरुवार को दिल्ली की तरफ बढ़ते किसानों को सेक्टर 18 फ्लाईओवर के पीछे रोका गया।
गुरुवार को पुलिस बैरिकेडिंग की वजह से गाजियाबाद में गाजीपुर बॉर्डर पर 1 किलोमीटर से ज्यादा लंबा जाम लगा।
गुरुवार को किसानों से पुलिस की नोकझोंक हुई। पुलिस ने किसानों को दिल्ली की तरफ बढ़ने से रोका था।
तीन साल पहले कृषि कानूनों के विरोध में चला था सबसे लंबा किसान आंदोलन
17 सितंबर 2020 को लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर देश के इतिहास में सबसे लंबा किसान आंदोलन चला था। पंजाब से शुरू हुआ आंदोलन पूरे देश में फैला। 25 नवंबर 2020 को किसान दिल्ली के लिए निकले। इसके 378 दिन बाद 11 दिसंबर 2021 को किसानों ने किसान संयुक्त मोर्चा विजय दिवस मनाया, जिसके बाद आंदोलन खत्म हुआ।
हजारों किसानों ने ‘दिल्ली चलो’ अभियान के हिस्से के रूप में केंद्र के तीन कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने की मांग की थी। इसमें पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान समेत देश के अन्य राज्यों के किसान दिल्ली में जुटे थे। इस आंदोलन में 700 किसानों की मौत हुई थी।
19 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने किसानों की मांगें मान ली थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर तीनों कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था। इसके बाद किसानों ने 11 दिसंबर को आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया था।
तीनों कृषि कानून, जिनके खिलाफ आंदोलन कर रहे थे किसान
तीनों नए कृषि कानूनों को 17 सितंबर, 2020 को लोकसभा ने मंजूर किया था। राष्ट्रपति ने तीनों कानूनों के प्रस्ताव पर 27 सितंबर को दस्तखत किए थे। इसके बाद से ही किसान संगठनों ने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था। ये तीनों कानून अब वापस हो चुके हैं।
1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020
इस कानून में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान था, जहां किसानों और कारोबारियों को मंडी के बाहर फसल बेचने की आजादी होती। कानून में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच कारोबार को बढ़ावा देने की बात कही गई थी। साथ ही मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन का खर्च कम करने की बात भी इस कानून में थी।
2. कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020
इस कानून में कृषि करारों (एग्रीकल्चर एग्रीमेंट) पर नेशनल फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया था। ये कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्म, प्रॉसेसर्स, थोक और खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जोड़ता था। इसके साथ किसानों को क्वालिटी वाले बीज की आपूर्ति करना, फसल स्वास्थ्य की निगरानी, कर्ज की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा देने की बात इस कानून में थी।
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से हटाने का प्रावधान था। सरकार के मुताबिक, इससे किसानों को उनकी फसल की सही कीमत मिलने का दावा किया गया था, क्योंकि इससे बाजार में कॉम्पिटिशन बढ़ने की उम्मीद थी।