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भास्कर ओपिनियन- मुफ्त की मलाई: मुफ्त की रेवड़ी बाँटने में पीछे नहीं हैं राज्य सरकारें

27 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी ने 8 फरवरी को विधानसभा में अंतरिम बजट पेश किया। - Dainik Bhaskar

राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी ने 8 फरवरी को विधानसभा में अंतरिम बजट पेश किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुफ़्त की रेवड़ी बाँटने के सख़्त ख़िलाफ़ हैं। वे कई बार कह चुके हैं कि सरकारों को राज्य और देश का समग्र विकास करके ही लोगों से वोट माँगना चाहिए। लेकिन राज्य सरकारें इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं हैं।

कांग्रेस और अन्य दलों, ख़ासकर आप पार्टी की सरकारें तो बिजली- पानी में यह मुफ़्त की रेवड़ी बाँटती फिर ही रही हैं, लेकिन अब भाजपा शासित राज्य भी इस काम में पीछे नहीं हैं।

मध्यप्रदेश में महिलाओं को 1200 रुपए महीना दिया जा रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है, इसका कोई भी तार्किक जवाब किसी के पास नहीं है। न सरकार के पास और न ही प्रशासन के पास।

इसी कड़ी में राजस्थान की भाजपा सरकार और आगे निकल चुकी है। गुरुवार को पेश हुए राज्य सरकार के बजट में ऐसी कई योजनाएँ हैं जो मुफ़्त की रेवड़ी की श्रेणी में आती हैं।

हालाँकि इसके पहले की अशोक गहलोत सरकार ने भी इस दिशा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। चुनाव जीतने की गरज से पूर्व गहलोत सरकार ने महिलाओं को मोबाइल फ़ोन तक बाँटे।

मोबाइल फ़ोन बाद में कम पड़ गए तो सरकार इनकी क़ीमत बराबर पैसे महिलाओं को देने लगी थी। कुछ इसी तरह की परम्परा राज्य की नई भाजपा सरकार ने भी जारी रखी है।

गुरुवार को राजस्थान विधानसभा में पेश किए गए बजट में राज्य सरकार ने बसों में बुजुर्गों के लिए किराए में पचास प्रतिशत की छूट दी है। साथ ही बेटी पैदा होने पर एक लाख रुपए का सेविंग बॉण्ड देने का भी वादा किया है।

दरअसल, इस सब के कारण पिसता है वह वेतनभोगी व्यक्ति जिसे अपनी सैलरी का मोटा हिस्सा इनकम टैक्स के रूप में चुकाना पड़ता है। वो इनकम टैक्स जिसमें पिछले दस सालों में केंद्र सरकार ने कोई राहत नहीं बख्शी है।

कुल मिलाकर, साढ़े तीन करोड़ लोगों से भारी भरकम टैक्स वसूलकर इस राशि को अस्सी करोड़ लोगों में बाँटा जा रहा है। सही है, ग़रीबों को सहारा या सहायता मिलनी ही चाहिए ताकि वे ऊपर उठ सकें, लेकिन जो लोग इसके लिए टैक्स के रूप में अपने हिस्से की गाढ़ी कमाई चुका रहे हैं, उनके बारे में कौन सोचेगा?

वोट बटोरने के लिए मुफ़्त की रेवड़ी बाँटने का यह चलन बंद होना ही चाहिए।

ऐसा नहीं किया गया तो टैक्स पेयर पर बोझ लगातार बढ़ता जाएगा और आख़िरकार उसकी कमर टूटना तय है।

करदाताओं को सही मायने में राहत देनी है तो सबसे पहले ये मुफ़्त की रेवड़ियाँ बाँटना बंद करना चाहिए। सरकार चाहे किसी भी दल की क्यों न हो!

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