नई दिल्ली/देहरादून18 घंटे पहलेलेखक: मनमीत
- कॉपी लिंक
तस्वीर उत्तराखंड के गोमुख ग्लेशियर की वासुकी झील की है। इसे A कैटेगरी में रखा गया है, इसे पंचर करना जरूरी हो गया है।
ग्लोबल वॉर्मिंग से हिमालय की ग्लेशियर झीलों पर खतरा बढ़ रहा है। बढ़ती गर्मी के कारण ये झीलें साल दर साल पिघल रही हैं। कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की 28,043 ग्लेशियर झीलों में से 188 झीलें कभी भी तबाही का बड़ा कारण बन सकती हैं। इससे लगभग तीन करोड़ की आबादी पर बड़ा संकट मंडरा रहा है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के डिजास्टर मैनेजमेंट डिवीजन और हिमालय पर्यावरण एक्सपर्ट की टीम द्वारा एक साल तक किए गए अध्ययन के बाद ये तथ्य सामने आए हैं। सबसे ज्यादा खतरे में पूर्वोत्तर की झीलें हैं। इनमें सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की 129 झीलें हैं। जबकि लद्दाख और कश्मीर की 26, उत्तराखंड की 13 और हिमाचल प्रदेश की 20 झीलों पर भी खतरा है।
ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार 15% तक बढ़ रही
टीम ने सभी ग्लेशियर झीलों को जोखिम के आधार पर A-B-C-D कैटेगरी में बांटा था। A कैटेगरी में अति संवेदनशील 188 झीलों को रखा गया। यहां पर ग्लेशियर के सबसे ज्यादा खिसकने और पिघलने का बेहद खतरनाक ट्रेंड दर्ज किया गया। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण 1.5 डिग्री पारा बढ़ने से हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार 15% तक बढ़ रही है।
भूकंप अथवा अन्य कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में इन ग्लेशियर झीलों के फटने से बड़ी मात्रा में अचानक पानी का बहाव होगा, इससे आसपास के इलाकों में बड़ी तबाही की आशंका है।
सिक्किम में 3 अक्टूबर 2023 को बादल फटने और लहोनक झील टूटने से तीस्ता नदी में भयानक बाढ़ आई थी।
10 साल में तीन बार बड़ी तबाही
- 2023: सिक्किम में लहोनक ग्लेशियर फटने से 180 की मौत, 5000 करोड़ का नुकसान।
- 2021: उत्तराखंड में नीति घाटी बड़ी ग्लेशियर झील फटने से 205 लोगों की मौत, लगभग 1500 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
- 2013: केदारनाथ में चौराबाड़ी ग्लेशियर फटने से 30 हजार लोगों की मौत, सैकड़ों लापता।
सिक्किम में दो ऑटोमेटेड स्टेशन, ये ग्लेशियरों को ट्रैक कर रहे
पूर्वोत्तर के संवेदनशील ग्लेशियर को ट्रैक करने के लिए दो ऑटोमेटेड वेदर स्टेशन बनाए गए हैं। सिक्किम में बने इन स्टेशनों से सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के सभी ग्लेशियर का डेटा जमा किया जा रहा है। रिमोट सेंसिंग डेटा, सैटेलाइट इमेजरी और ग्राउंड जीरो से मिले तथ्यों को डेटा में शामिल किया जा रहा है।
उत्तराखंड में केंद्र-राज्य सरकार की दो अलग-अलग टीमें बनाई गई हैं। ये उत्तराखंड की ग्लेशियर झीलों की जांच-नुकसान की आशंका का आकलन करेगी। ये मई से काम शुरू करेंगी।
ड्रिलिंग कर खतरनाक झीलों से पानी निकालना होगा
वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून के पूर्व साइंटिस्ट डॉ. डीपी डोभाल और डॉ. सुशील कुमार के मुताबिक यदि हिमालय के राज्यों में 7 रिक्टर पैमाने का भूकंप आ गया तो अत्यधिक संवेदनशील 188 ग्लेशियर झीलें किसी टाइम बम की तरह फूट पड़ेंगी। पानी के बेतहाशा फ्लो के कारण बड़ी आपदा की आशंका है।
पिछले साल सिक्किम में ग्लेशियर झील फटने से भारी तबाही हुई थी। बड़ी मात्रा में मिट्टी और मलबा भी आया था। इन संवेदनशील झीलों को अत्याधुनिक तकनीक की मदद से पंचर करना जरूरी है। इसमें झीलों में ड्रिल कर पानी को नियंत्रित तरीके से निकाला जाता है।
कई बार अंडरग्राउंड टनल बनाकर ऐसा करना ज्यादा सुरक्षित रहता है। इसमें से जब पानी गुजरेगा तो बड़ी मात्रा में ये अंडरग्राउंड वाटर के साथ भी मिल जाएगा।