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हिंदू रीति-रिवाज से की शादी, फिर इस्लाम कबूल बन गए विलायत खान; कोर्ट पहुंचा केस तो क्या हुआ?

जस्टिस लीला सेठ हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस थीं. पहले वह दिल्ली हाईकोर्ट में नियुक्त हुईं, फिर साल 1991 में उनका बतौर चीफ जस्टिस हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ट्रांसफर हो गया. दिल्ली हाईकोर्ट में रहते हुए उन्होंने साल 1983 में अंतर धार्मिक शादी (Inter Religion Marriage) के केस में एक ऐसा फैसला सुनाया जो नजीर बन गया. उस वक्त इस जजमेंट पर खूब चर्चा हुई. लीला सेठ ने अपनी आत्मकथा ‘घर और अदालत’ में भी इस केस का जिक्र किया है.

क्या था 1983 वो केस?
लीला सेठ (Justice Leila Seth) लिखती हैं कि साल 1983 की शुरुआत में मेरी एकल बेंच के पास एक दिलचस्प मामला आया. यस केस इंटर-पर्सनल लॉ से जुड़ा था. दो हिंदू, विलायत राज और सुनीला का विवाह जून 1978 में हुआ था. उनकी शादी हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी.

विलायत राज बन गए मुसलमान
शादी के दो वर्ष बाद उन्हें एक बच्चा भी हुआ, लेकिन बाद में दोनों अलग हो गए. इसी बीच विलायत राज ने इस्लाम कबूल कर लिया और अब विलायत खान हो गया.

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डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने क्या फैसला दिया?
विलायत खान ने हिंदू विवाह कानून 1955 (Hindu Marriage Act 1955) की धारा 13(1) (आईए) के तहत डिस्ट्रिक कोर्ट में याचिका दायर कर निर्दयता के आधार पर तलाक मांग लिया. केस की मेरिट पर विचार होता और निर्दयता के आरोपों की पुष्टि होती, इससे पहले सुनीला (उसकी पत्नी) ने यह कहते हुए याचिका पर आपत्ति उठाई कि यह विचार योग्य ही नहीं है.

उसका तर्क था कि चूंकि उसका पति धर्मांतरण कर मुस्लिम हो गया है, इसलिए उसने हिंदू विवाह क़ानून (हिंदू मैरिज एक्ट) के तहत याचिका दायर करने का अधिकार खो दिया है. जिला जज ने उसकी आपत्ति को मंजूर करते हुए विलायत खान की याचिका खारिज कर दी.

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हाईकोर्ट पहुंचा मामला
इस फैसले के खिलाफ उसने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की. लीला सेठ लिखती हैं कि मैंने याचिका मंजूर कर ली. केस के हर पहलू का अध्ययन किया. फिर फैसला दिया कि अगर कोई शादी हिंदू रीति-रिवाज से हुई है तो तलाक भी हिंदू रीति-रिवाज से ही हो सकता है. भले ही याचिका याचिकाकर्ता मुस्लिम बन चुका है लेकिन इस आधार पर उसे तलाक के लिए याचिका दायर करने से नहीं रोका जा सकता है, अगर कोई और दूसरा कारण न हो तो.

जज ने क्या फैसला दिया?
सेठ लिखती हैं कि यह कानून, प्रावधानों के जरिए भी साफ़ था कि यह उस स्थिति में भी लागू होगा, यदि कोई एक पक्ष ही हिंदू हो. वैसे धारा 13 (1) (आईआई) के तहत सुनीला ख़ुद भी इस आधार पर तलाक़ मांग सकती थी कि विलायत राज ने अपना धर्म बदल लिया है, लेकिन साफ़ था कि वह ऐसा करना नहीं चाहती थी और न ही यह चाहती थी कि विलायत को याचिका दायर करने की अनुमति मिले.

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लीला सेठ लिखती हैं कि मैंने सुनीला की आरंभिक आपत्ति ठुकरा दी और व्यवस्था दी कि विलायत ख़ान की याचिका को एकदम शुरुआती चरण में ही ख़ारिज नहीं किया जा सकता. मैंने जिला जज के फ़ैसले को दरकिनार करते हुए इस मामले में उठाए गए मूल मुद्दे यानी निर्दयता के आरोप पर सुनवाई की.

Tags: Conversion, DELHI HIGH COURT, Islam

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