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सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST रिजर्वेशन रिव्यू पर फैसला सुरक्षित रखा: 2004 में कहा था- राज्यों को सब-कैटेगरी बनाने का अधिकार नहीं

नई दिल्ली22 मिनट पहले

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राज्यों को SC-ST कोटा रिजर्वेशन के क्लासिफिकेशन का अधिकार है या नहीं, इस पर गुरुवार (8 फरवरी) को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट SC-ST में कोटा को लेकर दिए गए 2004 के अपने ही फैसले की समीक्षा कर रही थी।

पिछले 2 दिन की सुनवाई में 7 जजों की बेंच ने IAS-IPS के बच्चों को कोटा मिलने पर सवाल उठाया था। बेंच ने यह भी कहा था कि SC और ST अपनी आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति के मामले में एक समान नहीं हो सकते हैं।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के अपने फैसले में कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जाति (SCs) और अनुसूचित जनजाति (STs) में कोटा के लिए सब-कैटेगरी बनाने का अधिकार नहीं है।

यह सुनवाई CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच में हुई।

पिछले 2 दिन की सुनवाई में क्या-क्या हुआ…

6 फरवरी : कोर्ट ने पूछा- क्या IAS-IPS अफसरों के बच्चों को कोटा मिलना चाहिए
सुनवाई के पहले दिन पंजाब सरकार ने दलील दी कि पिछड़े वर्गों में सबसे पिछड़े समुदायों की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें रोजगार के अवसरों का लाभ उठाने के लिए साधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए। इस पर बेंच ने सवाल किया कि पिछड़ी जातियों में मौजूद संपन्न उपजातियों को आरक्षण की सूची से क्यों नहीं हटाया जाना चाहिए।

बेंच ने यह भी पूछा कि क्या IAS-IPS अफसरों के बच्चों को कोटा मिलना चाहिए? जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि इन्हें आरक्षण सूची से क्यों नहीं निकाला जाना चाहिए? कुछ उपजातियां संपन्न हुई हैं। उन्हें आरक्षण से बाहर आना चाहिए। ये बाहर आकर बेहद पिछड़े और हाशिए पर चल रहे वर्ग के लिए जगह बना सकते हैं।

7 फरवरी: SC-ST आर्थिक, शैक्षिक, सामाजिक स्थिति में एक समान नहीं हो सकते
सुनवाई के दूसरे दिन कोर्ट ने कहा कि SC और ST अपनी आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति के मामले में एक समान नहीं हो सकते हैं। ये एक निश्चित उद्देश्य के लिए एक वर्ग हो सकते हैं, लेकिन वे सभी उद्देश्यों के लिए एक कैटेगरी नहीं बन सकते। पढ़ें पूरी खबर…

रिव्यू की जरूरत क्यों पड़ी
2006 में पंजाब सरकार कानून लेकर आई, जिसमें शेड्यूल कास्ट कोटा में वाल्मीकि और मजहबी सिखों को नौकरी में 50% रिजर्वेशन और प्राथमिकता दी गई। 2010 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताया और कानून खत्म कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार समेत 23 याचिकाएं दायर की गईं। सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर 6 फरवरी को सुनवाई की शुरू की।

पंजाब के एडवोकेट जनरल गुरमिंदर सिंह ने कहा सुनवाई के दौरान कहा कि भर्ती परीक्षा में 56% अंक हासिल करने वाले पिछड़े वर्ग के सदस्य को 99% हासिल करने वाले उच्च वर्ग के व्यक्ति की तुलना में प्राथमिकता दी जाए। क्योंकि उच्च वर्ग के पास हाईक्लास सुविधाएं हैं, जबकि पिछड़ा वर्ग इन सुविधाओं के बिना ही संघर्ष करता है।

ये खबर भी पढ़ें…

CJI बोले-चंडीगढ़ मेयर चुनाव में लोकतंत्र की हत्या हुई: वीडियो में चुनाव अधिकारी बैलट खराब करते दिखे, सफाई दें

चंडीगढ़ मेयर चुनाव में हुई धांधली के खिलाफ आम आदमी पार्टी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (5 फरवरी) को सुनवाई हुई। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने वह वीडियो भी देखा, जिसमें चुनाव अधिकारी अनिल मसीह बैलट पेपर पर क्रॉस लगाते दिखे थे।

इसके बाद CJI ने कहा- वीडियो से साफ पता चल रहा है कि चुनाव अधिकारी ने बैलट पेपरों को डिफेस्ड (खराब) किया। क्या ऐसे ही चुनाव कराए जाते हैं? यह लोकतंत्र का मजाक है। लोकतंत्र की हत्या है। इस अफसर पर केस होना चाहिए। पूरी खबर पढ़ें…

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