आपने अक्सर ये खबरें देखी, सुनी और पढ़ी होंगी कि दो अलग धर्म के जोड़ों ने शादी करने के लिए पहले अपना धर्म छोड़कर साथी का धर्म अपनाया. अगर ऐसा करने वाले कपल में एक हिंदू और एक मुस्लिम हो तो मामला तूल पकड़ते देर नहीं लगाता है. लोग तरह-तरह की बातें करना शुरू कर देते हैं. कई बार तो इसे नाक का सवाल भी बना लिया जाता है और बहुत हंगामा होता है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि देश में एक ऐसा कानून भी है, जो शादी करने के लिए धर्म बदलने की जरूरत को खत्म करता है. हम स्पेशल मैरिज एक्ट की बात कर रहे हैं.
स्पेशल मैरिज एक्ट धार्मिक कानूनों के बिना ही दो अलग-अलग धर्म के लोगों को बिना धर्म बदले शादी करने का मौका देता है. स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 को एसएमए भी कहते हैं. ये सिविल मैरिज का कानून है, जो धर्म की जगह राज्य को विवाह कराने का अधिकार देता है. विवाह, तलाक, बच्चे को गोद लेने जैसे काम धार्मिक नियमों के तहत निर्धारित होते हैं. इन्हें अलग से कानून का रूप दिया गया है. इन्हें पर्सनल लॉ कहा जाता है. मुस्लिम मैरिज एक्ट 1954 और हिंदू मैरिज एक्ट 1955 इसी कानून के तहत आते हैं.
शादी से पहले क्यों बदलना पड़ता है धर्म
हिंदू मैरिज एक्ट और मुस्लिम मैरिज एक्ट के तहत वर तथा वधु पक्षों का धर्म एक ही होना अनिवार्य होता है. अगर दोनों का धर्म अलग है तो पर्सनल लॉ उन्हें शादी करने की इजाजत नहीं देते हैं. अगर फिर भी शादी करना चाहते हैं तो दोनों में एक को अपना धर्म छोड़कर दूसरे का अपनाना होगा. आसान शब्दों में कहतें तो अगर कोई हिंदू और मुस्लिम लड़का-लड़की मुस्लिम मैरिज एक्ट के जरिये आपस में शादी करना चाहते हैं तो हिंदू को मुस्लिम धर्म अपनाना ही होगा. वहीं, अगर दोनों हिंदू मैरिज एक्ट के जरिये शादी करना चाहते हैं तो मुस्लिम को हिंदू बनना होगा.
स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत दो अलग धर्म के लोग बिना धर्म परिवर्तन किए या अपनी धार्मिक पहचान गंवाए शादी कर सकते हैं.
फिर बिना धर्म बदले कैसे होगा विवाह
स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत दो अलग धर्म के लोग बिना धर्म परिवर्तन किए या अपनी धार्मिक पहचान गंवाए शादी कर सकते हैं. इसके दायरे में हिंदू या मुस्लिम ही नहीं देश के सभी धर्म के नागरिक आते हैं. भारत में सिविल और धार्मिक दोनों तरह के विवाह को मंजूरी है. इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध समेत भारत के सभी धर्म के लोग शामिल हैं. हालांकि, इस नियम में कुछ शर्तें हैं. लेकिन, ये शर्तें किसी धर्म के आड़े आने वाली शर्तें नहीं हैं.
स्पेशल मैरिज एक्ट में पूरी करनी होंगी शर्तें
विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने के लिए दोनों में से किसी की भी पहले से शादी नहीं हुई होनी चाहिए. अगर हुई हो तो तलाक हुआ होना चाहिए. इसके अलावा अगर दोनों में कोई भी पक्ष मानसिक तौर पर शादी के लिए सहमति देने में अक्षम है तो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह नहीं हो सकता है. अगर शादी के समय दोनों पक्ष सहमति देने की स्थिति में हों, लेकिन दोनों में किसी को भी बार-बार पागलपन के दौरे आते हों या किसी मानसिक विकार से पीड़ित हों तो उनकी आपस में शादी नहीं हो सकती है. ऐसे लोग विवाह के लिए अयोग्य माने जाएंगे. दोनों की उम्र कानून के मुताबिक तय सीमा से ज्यादा होनी चाहिए.
नोटिस के बाद आपत्ति होने पर होगी जांच
विवाह की प्रक्रिया के लिए पहले कानून की धारा-5, 6 और 7 के तहत शादी करने वाले पक्षों को जिले के मैरिज ऑफिसर को लिखित नोटिस देना होता है. इसमें कम से कम एक पक्ष एक महीने से उस जिले का निवासी होना ही चाहिए. ऑफिस उस नोटिस को दोनों पक्षों को जारी करता है. इसके बाद 30 दिन का समय मिलता है. इस दौरान अगर किसी को शादी पर आपत्ति हो तो जांच की जा सकती है. इसके बाद अगर आपत्ति की जांच में धारा-4 के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं पाया गया तो शादी की प्रक्रिया शुरू होती है. इसमें दोनों पक्षों को उपस्थित रहना होता है. साथ ही तीन गवाहों की जरूरत पड़ती है. ये गवाह मैरिज ऑफिस में दस्तखत करते हैं. इसके बाद आधिकारिक तौर पर शादी मान्य हो जाती है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने दो अलग धर्म के लोगों के बीच शादी को लेकर गाइडलाइंस जारी की हैं.
शादी के लिए धर्म बदलने की नई गाइडलाइंस
दिल्ली हाईकोर्ट ने दो अलग धर्म के लोगों के बीच शादी को लेकर गाइडलाइंस जारी की हैं. इसमें शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने वालों के लिए नए नियम बताए गए हैं. धर्म बदलने वाले शख्स की सहमति के तौर पर कुछ दस्तावेज तय किए हैं. यही नहीं, धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को अनिवार्य रूप से हलफनामा देना होगा, जिसमें लिखा होगा कि वो शादी के लिए अपने धर्म को बदलने के फैसले के नतीजों को अच्छे से जानता/जानती और समझता/समझती है. दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि धर्म बदलने वाले पक्ष को इस फैसले से जुड़ी दिक्कतों के बारे में पता होना चाहिए. उसे धर्म से जुड़े प्रभाव की जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही धर्म बदलने के बाद कानूनी स्थिति में बदलावों के बारे में पता होना चाहिए.
दोनों पक्षों को जमा करने होते हैं कई सर्टिफिकेट
हाई कोर्ट ने कहा कि बिना जानकारी के अपने धर्म को छोड़कर दूसरे धर्म को अपनाने से कई समस्याएं आ सकती हैं. उसे तैयार होना होगा कि अगर नया धर्म मंजूरी ना दे तो वह अपने पहले धर्म का पालन नहीं कर पाएगा/पाएगी. दोनों पक्षों की उम्र, वैवाहिक इतिहास, वैवाहिक स्थिति से जुड़ा हलफनामा देना होगा. धर्मांतरण वाले सर्टिफिकेट के साथ एक और सर्टिफिकेट जोड़ा जाएगा, जिसमें नए धर्म के सिद्धांतों, अनुष्ठानों और अपेक्षाओं के साथ तलाक, उत्तराधिकार, हिरासत च धार्मिक अधिकारों से संबंधित जानकारी के बारे में बताया गया हो. धर्म बदलने वाले पक्ष को ये सर्टिफिकेट स्थानीय भाषा में पेश करने होंगे. इससे सुनिश्चित होगा कि व्यक्ति ने प्रक्रिया को सही ढंग से समझा है.
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FIRST PUBLISHED : February 2, 2024, 21:06 IST