मेरठ. कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जो राजनीतिक बयार बहती है, वही पूरब तक जाती है. इस राजनीतिक बयार अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियां जोर आजमाइश कर रही हैं. 2014 और 2019 से इतर इस बार नए राजनीतिक समीकरण साधकर बीजेपी ने नया दांव चल दिया है. इस बार आरएलडी और बीजेपी का गठबंधन है. इस राजनीतिक गठबंधन से वेस्ट यूपी के कई मुद्दे रातों-रात ठंडे पड़ गए. ऐसे में विपक्ष इस गठजोड़ को तोड़ निकालने की जुगत में जुटा हुआ है. लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी-आरएलडी गठबंधन में कई जाट नेताओं की अग्निपरीक्षा है तो वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन और बीएसपी में मुस्लिम मतदाताओं को लेकर रेस लगी हुई है.
राजनीति को अलग ही दिशा देने के लिए आतुर रहने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस बार नई चुनावी बयार चल रही है. सियासत का यह दंगल तो पुराना ही है, लेकिन दांव नए चले जा रहे हैं. बीजेपी ने पश्चिमी यूपी को बेहद गंभीरता से लेते हुए आरएलडी को साथ जोड़ लिया है. वहीं, विपक्ष भी बीजेपी के चुनावी रथ को रोकने के लिए हर जुगत लगाने को आतुर दिख रहा है.
पश्चिमी यूपी की 27 सीटों पर चुनाव शुरुआती तीन चरणों में
प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से पश्चिमी यूपी की 27 सीटों पर चुनाव शुरुआती तीन चरणों में ही लगभग पूरा हो जाएगा. ऐसे में इन सीटों पर अपनी विजय पताका फहराने के लिए सभी दलों ने मशक्कत शुरू कर दी है. बीजेपी पश्चिमी यूपी की 27 सीटों पर अभी सबसे ज्यादा ध्यान लगाए हुए है. कारण साफ है 2014 के लोकसभा चुनाव में इनमें से भाजपा ने 24 जीती थीं. पिछला चुनावा आया तो बीजेपी को यहां झटका लगा. वह 27 में केवल 19 सीट ही जीत पाई. सपा-बसपा ने चार-चार सीटें बांट लीं. इसी का परिणाम है कि इस बार बीजेपी ने इस क्षेत्र को तरजीह देते हुए यहां गठबंधन का दांव चला है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर 18% से अधिक जाट हैं. बीजेपी ने भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर जाट वोटरों को साधने के लिए दांव चला. इस चुनाव में भूपेंद्र चौधरी की भी परीक्षा है कि वह बीजेपी की उम्मीद पर कितना खरा उतरते हैं. वहीं आरएलडी मुखिया चौधरी जयंत की अगुवाई में ये पहला लोकसभा चुनाव है, लिहाजा उनकी भी अग्निपरीक्षा है.
जाट-मुस्लिम का समीकरण एक झटके में बिखर गया
इधर, पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोटरों की संख्या किसी भी चुनाव का परिणाम बदलने का माद्दा रखती है. सपा, बसपा ने पिछले चुनाव में इसी समीकरण के जरिए आठ सीटें जीती थीं. वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाटों और मुस्लिमों के बीच जो दूरी बढ़ीं, वह आरएलडी के लगातार प्रयास से कम हुई थीं. मुस्लिमों ने खुले दिल से आरएलडी को वोट दिया था लेकिन इस बार ये समीकरण बिलकुल बदल गया है. आरएलडी के बीजेपी के साथ जाते ही जाट-मुस्लिम का यह समीकरण एक झटके में बिखर गया है. अब मुस्लिम किसका साथ देंगे, यह अहम सवाल है.
पिछले चुनाव में 9 सीटों पर जीत का मार्जिन 25 हजार वोटों से भी कम था. इनमें पश्चिमी यूपी की मेरठ, बागपत और मुजफ्फरनगर की सीट भी शामिल थी. बीजेपी के सामने जहां इस बार इन सीटों को ज्यादा वोटों के अंतर से जीतने की चुनौती है, तो विपक्ष चाहेगा कि इस अंतर को कम करते हुए बाजी मार ली जाए. अब तक जिन प्रत्याशियों की घोषणा वेस्ट यूपी में हो चुकी है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जातिगत समीकरणों को साधने के लिए हर पार्टी जोर आजमाइश कर रही है.
ये प्रत्याशी आजमा रहे दांव
सहारनपुर में बसपा से माजिद अली, कैराना में बीजेपी से प्रदीप कुमार, सपा से इकरा हसन, मुजफ्फरनगर में बीजेपी से संजीव बालियान, सपा से हरेंद्र मलिक, बसपा से दारा सिंह प्रजापति, बिजनौर में रालोद से चंदन चौहान, सपा से यशवीर सिंह, बसपा से चौधरी बिजेंद्र सिंह…नगीना से बीजेपी से ओम कुमार, सपा से मनोज कुमार, रामपुर से भाजपा से घनश्याम लोधी, संभल से बीजेपी से परमेश्वर लाल सैनी…अमरोहा से बीजेपी से कंवर सिंह तंवर, बसपा से हाजी जमील, मेरठ में सपा से भानु प्रताप सिंह, बसपा से देवव्रत त्यागी, बागपत में आरएलडी से डॉ. राजकुमार सांगवान, बसपा से प्रवीण बैंसला, गौतमबुद्धगर में बीजेपी से महेश शर्मा, सपा से राहुल अवाना, बुलंदशहर में बीजेपी से डॉ. भोला सिंह, अलीगढ़ में सपा से बिजेंद्र सिंह, हाथरस में सपा से जसवीर वाल्मीकि, मथुरा में बीजेपी से हेमा मालिनी, आगरा में बीजेपी से एसपी सिंह बघेल, बसपा से पूजा अमरोही, बरेली में सपा से प्रवीन सिंह ऐरन चुनावी मैदान में हैं.
चुनाव में मुद्दों से ज्यादा गूंज जातीय समीकरणों की है. आरएलडी और बीजेपी का गठबंधन होने के कारण कई मुद्दे तो ठंडे ही पड़ गए, ऐसे में देखने वाली बात हो की कि बाजी कौन जीतता है.
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FIRST PUBLISHED : March 22, 2024, 23:41 IST