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अयोध्‍या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्‍ठा का भव्‍य समारोह शुरू हो चुका है. प्राण प्रतिष्‍ठा तक हर दिन अलग-अलग अनुष्‍ठानों का आयोजन किया जाएगा. समारोह शुरू होने से पहले देश-विदेश से रामलला के लिए ढेरों उपहार आए. इस क्रम में भगवान राम की ससुराल जनकपुरी से भी उपहार आए थे. लेकिन, क्‍या आप जानते हैं कि राजा जनक ने सीता स्‍वयंवर का निमंत्रण अयोध्‍या भेजा ही नहीं था. अयोध्‍या निमंत्रण ना भेजने की वजह क्‍या थी? अगर निमंत्रण नहीं भेजा गया था तो भगवान राम जनकपुरी पहुंचकर सीता स्‍वयंवर में शामिल कैसे हुए?

सीता स्‍वयंवर का निमंत्रण अयोध्‍या नहीं भेजने का कारण राजा जनक का बड़ा डर था. पौराणिक कथाओं में इसका जिक्र मिलता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जनकपुरी में एक व्यक्ति की शादी हुई. वह पहली बार ससुराल जा रहा था. उसे ससुराल के रास्ते में एक जगह दलदल मिला. दलदल में एक गाय फंसी हुई थी, जो करीब-करीब मरने वाली थी. उसने सोचा कि गाय तो मरने ही वाली है और कीचड़ में जाने पर कपड़े खराब हो जाएंगे. वहीं, वो दलदल में फंस भी सकता था. इसलिए वह गाय के ऊपर पैर रखकर आगे निकल गया. जैसे ही उसने दलदल को पार किया गाय ने दम तोड़ दिया और व्‍यक्ति को शाप दिया कि तू जिसके लिए मुझे मरता छोड़कर जा रहा है, उसे ही देख नहीं पाएगा. अगर उसे देखेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी.

चली गई पति की आंखों की रोशनी
ससुराल पहुंचकर वह व्‍यक्ति घर की तरफ पीठ करके दरवाजे के बाहर ही बैठ गया. ससुराल के लोगों की तमाम कोशिशों के बाद भी वह अंदर नहीं गया. इस पर उसकी पत्‍नी ने घर के बाहर आकर उससे अंदर चलने को कहा, लेकिन व्‍यक्ति ने शाप के डर से उसकी तरफ देखा ही नहीं. इस पर पत्‍नी ने इसका कारण पूछा तो उसने गाय के शाप के बारे में बताया. फिर पत्‍नी ने कहा कि मैं पतिव्रता स्‍त्री हूं. आप मेरी तरफ देखो, मुझे कुछ नहीं होगा. फिर व्‍यक्ति ने जैसे ही पत्‍नी की तरफ देखा उसकी आंखों की रोशनी चली गई.

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श्री राम ने इतनी तेजी से शिव धनुष उठाकर प्रत्‍यंचा चढ़ाई और धनुष टूटा कि कोई कुछ समझ ही नहीं पाया.

विद्वानों ने बताया समस्‍या का निदान
वह स्‍त्री अपने अंधे पति को लेकर राजा जनक के दरबार में गई. उसने राजा जनक को पूरी बात बताई. फिर राजा जनक ने राज्य के सभी विद्वानों को बुलाकर समस्या बताई और गौ-शाप से मुक्ति का उपाय पूछा. सभी विद्वानों ने आपस में बातचीत करने के बाद कहा कि व्‍यक्ति की पत्‍नी को छोड़कर अगर कोई दूसरी पतिव्रता स्‍त्री छलनी में गंगाजल लाकर छींटे उसकी आंखों पर लगाए, तो गौ-शाप से मुक्ति मिल जाएगी. जब यह सूचना अयोध्‍या के राजा दशरथ को मिली, तो उन्‍होंने अपनी सभी रानियों से पूछा. इस पर सभी रानियों ने कहा कि राजमहल तो क्या आप राज्य की किसी भी महिला से पूछेंगे, तो वह भी पतिव्रता मिलेगी. राजा दशरथ ने एक सफाई वाली को बुलाया. पूछे जाने पर महिला ने कहा कि वह पतिव्रता स्‍त्री है.

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सफाई करने वाली महिला ने ठीक कीं आखें
महाराज दशरथ ने राजा जनक समेत सभी राजाओं को यह दिखाने के लिए उसी महिला को जनकपुरी भेजा कि उनका राज्य सबसे उत्तम है. राजा जनक ने भी उस महिला का बहुत सम्मान किया. अयोध्‍या से आई महिला छलनी लेकर गंगा किनारे गई और प्रार्थना की कि हे गंगा मां, अगर मैं पूर्ण पतिव्रता हूं तो गंगाजल की एक बूंद भी नीचे नहीं गिरनी चाहिए. प्रार्थना करके उसने गंगाजल को छलनी में पूरा भर लिया और राजदरबार पहुंच गई. महिला ने व्यक्ति की आंखों पर छींटे मारे तो उसकी रोशनी लौट आई. राजा जनक ने राज सम्मान देकर उसे अयोध्‍या विदा कर दिया.

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किस बात से डर गए थे राजा जनक
सीता स्वयंवर के समय राजा जनक को सफाई वाली महिला का ध्‍यान आया तो उन्‍होंने सोचा कि इतनी पतिव्रता महिला का पति कितना शक्तिशाली होगा. अगर राजा दशरथ ने इसी तरह से किसी द्वारपाल या सैनिक को स्वयंवर में भेज दिया, तो वह तो धनुष को आसानी से उठा लेगा. ऐसे में राजकुमारी का किसी राजकुमार के बजाय सैनिक या द्वारपाल से हो जाएगा. इसी डर के कारण राजा जनक ने सीता स्वयंवर का निमंत्रण अयोध्या नहीं भेजा.

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राम औश्र लक्ष्‍मण अपने गुरु विश्‍वामित्र के साथ सीता स्‍वयंवर में जनकपुरी पहुंचे थे.

जनकपुरी कैसे पहुंचे भगवान राम
अयोध्या के राजकुमार सीता स्‍वयंवर के समय गुरु विश्‍वामित्र के साथ रह रहे थे. राजा जनक ने गुरु विश्‍वामित्र को कार्यक्रम में पहुंचकर आशीर्वाद देने का आग्रह किया. इस पर वह राम और लक्ष्‍मण को लेकर जनकपुरी पहुंच गए. फिर भगवान राम ने शिव धनुष उठाकर प्रत्‍यंचा चढ़ाई तो वो टूट गए. रामचरित मानस में लिखा है, ‘लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुं न लखा देख सबु ठाढ़ें। तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा।’ इसका मतलब है कि श्री राम ने सभा में धनुष कब उठाया, कब चढ़ाया और कब खींचकर तोड़ दिया, किसी को पता भी नहीं चला. उन्‍होंने सीता स्‍वयंवर की शर्त पूरी की. फिर राजा जनक ने महाराज दशरथ को राम सीता विवाह का निमंत्रण भेजा. राजा दशरथ के पहुंचने पर विधि विधान से राम सीता विवाह हुआ.

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