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- Election Commission In Manipur Facing Difficulty To Find Voters Among 58 Thousand Displaced People
इम्फाल30 मिनट पहले
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विस्थापितों की परेशानी पर चुनाव अफसरों का कहना है कि हम प्रक्रिया से चल रहे हैं। इससे विस्थापित वोटर्स का सही नंबर मिल जाएगा। (फाइल)
पिछले साल 3 मई से हिंसा झेल रहे मणिपुर में 19 और 26 अप्रैल को दो चरणों में लोकसभा चुनाव होना है। दो सीटें हैं- इनर और आउटर मणिपुर। 20,29,601 वोटर मतदान करेंगे, लेकिन यहां बने 349 राहत कैंपों में रह रहे 58 हजार विस्थापितों में कितने वोटर हैं, यह आंकड़ा फिलहाल चुनाव आयोग के पास नहीं हैं। वोटिंग के 17 दिन बचे हैं, ऐसे में हजारों विस्थापित परेशान हो रहे हैं।
दरअसल, हिंसा में जिन्होंने घर छोड़ा, उनमें कईयों के दस्तावेज आगजनी में जला दिए गए थे। बीते 3 महीनों में ज्यादातर ने प्रशासन की मदद से वोटर कार्ड तो बनवा लिए, लेकिन अभी भी हजारों ऐसे हैं, जिनके पास वोटर कार्ड नहीं है।
इस समस्या के समाधान के लिए आयोग ने 27 मार्च को एक नोटिस निकालकर विस्थापितों से आग्रह किया कि वे संबंधित रिलीफ कैंप के नोडल ऑफिसर से आईडी फार्म लेकर उसे जमा करें। इससे उन्हें पोलिंग बूथ पर ही मतदान करने की सुविधा मिल पाएगी।
इसी से कैंपों के वोटर्स की संख्या भी पता चलेगी। विस्थापितों की परेशानी पर चुनाव अफसरों का कहना है कि हम प्रक्रिया से चल रहे हैं। इससे विस्थापित वोटर्स का सही नंबर मिल जाएगा।
हिंसा के बाद 65 हजार से ज्यादा लोगों ने घर छोड़ा
मणिपुर में अब तक 65 हजार से अधिक लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। 6 हजार मामले दर्ज हुए हैं और 144 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। राज्य में 36 हजार सुरक्षाकर्मी और 40 IPS तैनात किए गए हैं। पहाड़ी और घाटी दोनों जिलों में कुल 129 चौकियां स्थापित की गईं हैं।
इंफाल वैली में मैतेई बहुल है, ऐसे में यहां रहने वाले कुकी लोग आसपास के पहाड़ी इलाकों में बने कैंप में रह रहे हैं, जहां उनके समुदाय के लोग बहुसंख्यक हैं। जबकि, पहाड़ी इलाकों के मैतेई लोग अपना घर छोड़कर इंफाल वैली में बनाए गए कैंपों में रह रहे हैं।
4 पॉइंट्स में जानिए क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।
कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।