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भास्कर ओपिनियन: लोकसभा चुनाव के सात चरणों से आख़िर विपक्ष को आपत्ति क्यों?

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  • Why Does The Opposition Have Any Objection To The Seven Phases Of Lok Sabha Elections?

4 घंटे पहले

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अब विपक्षी दलों को लोकसभा चुनाव के सात चरणों से भी दिक़्क़त है। कह रहे हैं- इतने फेज में चुनाव करवाने की क्या ज़रूरत है? अब तक तो चार-पाँच चरणों में ही चुनाव होते रहे हैं। जबकि पिछला लोकसभा चुनाव ही छह चरणों में हुआ था।

तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि ज़्यादा लम्बा चुनाव होने से बड़ी पार्टियों को फ़ायदा होता है। बड़ी पार्टी से यहाँ मतलब है, ज़्यादा चंदा पाने वाली और धनवान पार्टियों से है। तृणमूल कांग्रेस की बात तर्कसंगत नहीं लगी। आख़िर आप कहना क्या चाहते हैं? चुनाव के लम्बा खिंचने से केवल बड़ी या पैसे वाली पार्टियों का भला होता है, इसका लॉजिक क्या है?

जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसके नेता राहुल गांधी ने मुंबई में अपनी न्याया यात्रा का समापन कर दिया है। इस न्याय यात्रा को वो क्यों कर रहे थे, कैसे कर रहे थे? प्रयोजन क्या था, इस देश के लोग तो अभी तक नहीं जान पाए। कांग्रेसी नेता जो उनके आस पास घिरे रहते हैं, वे ज़रूर जानते होंगे।

ये बात और है कि कांग्रेस कमान के आस-पास घिरे रहने वाले ज़्यादातर नेता राज्यसभा वाले ही हैं। प्रत्यक्ष चुनाव के ज़रिए आने वाले नेताओं का कांग्रेस में बड़ा टोटा है। इस बीच कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का कहना है कि चुनाव को लम्बा इसलिए खींचा गया है ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ज़्यादा से ज़्यादा दिन तक चुनाव प्रचार कर सकें।

खरगे जी को ये बात समझ में क्यों नहीं आती कि चुनाव लम्बा खिंचने से केवल प्रधानमंत्री को ही ज़्यादा दिन तक प्रचार का मौक़ा नहीं मिलेगा बल्कि सभी दलों के बड़े नेता ज़्यादा समय तक प्रचार कर सकेंगे। कांग्रेस के नेता भी। चाहें वे खरगे साहब हों या स्वयं राहुल गांधी या कोई और।

वैसे भी कांग्रेस की लचर और ढीली- ढाली कार्यशैली के कारण प्रियंका गांधी का चुनाव लड़ना तो अभी तक तय ही नहीं है। ऊपर से पहली बार सोनिया गांधी ने भी लोकसभा की राह छोड़कर राज्यसभा की गली पकड़ ली है, सो अलग!

मध्यप्रदेश के क़द्दावर नेता दिग्विजय सिंह पहले ही लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं। स्वयं कांग्रेस के आलाकमान कहे जाने वाले खरगे साहब भी खुद चुनाव लड़ने की बजाय अपने दामाद को टिकट दिलाने के लिए लालायित हैं।

जहां तक कमलनाथ का मामला है, वे भाजपा में जाने की चर्चाओं के चलते पहले ही अपनी इज़्ज़त की किरकिरी करवा चुके हैं। उनके बेटे नकुलनाथ को कांग्रेस ने मध्यप्रदेश के छिन्दवाड़ा से टिकट तो दे दी है लेकिन अब तक यह तय नहीं है कि चुनाव बाद या जीतने के बाद वे कितने दिन तक कांग्रेस में रह पाएँगे! बहरहाल, कांग्रेस की हालत काफ़ी पतली नज़र आ रही है। भाजपा ने अपना परचम लहरा दिया है।

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