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- Lok Sabha Elections In Maharashtra And Bihar Will Prove To Be The Most Complicated.
8 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर
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भाजपा ने बिहार में गठबंधन के तहत सीटों का बँटवारा कर दिया है। जीतन राम माँझी और उपेंद्र कुशवाह की पार्टी आरएलएम को एक- एक सीट दी गई है। रामबिलास पासवान के बेटे चिराग़ की पार्टी लोजपा (आर) को पाँच सीटें मिली हैं जबकि चिराग़ के चाचा पशुपति को न तो कोई सीट दी गई है और न ही सीट बँटवारे के लिए की गई प्रेस कान्फ्रेंस में उनका कोई ज़िक्र किया गया।
सबसे ज़्यादा सीटें पाने वाली पार्टियों में भाजपा और जदयू रहीं। समझौते के मुताबिक भाजपा 17 और जदयू 16 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। भाजपा को सत्रह सीटों पर लड़ना है, इसमें तो कोई शंका नहीं है लेकिन जदयू को सोलह सीट देने का निर्णय भाजपा के चार सौ प्लस के अभियान में दिक़्क़त पैदा कर सकता है।
7 मार्च को सीटों की लिस्ट के साथ बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी ने नड्डा से चिराग पासवान ने मुलाकात की थी।
दरअसल, जदयू और नीतीश कुमार को राजद से अचानक नाता तोड़ने और सत्ता के लिए बार- बार पाला बदलने के निर्णय महंगे पड़ सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो एनडीए के सबसे बड़ी जीत के अभियान के लिए यह ठीक नहीं होगा। ख़ैर, बिहार की बात छोड़िए, अब आते हैं महाराष्ट्र में। यहाँ इस बार कुछ भी अंदाज़ा लगाना ठीक नहीं होगा।
हालाँकि पुत्र और पुत्री मोह में दो बड़ी पार्टियाँ दो फाड़ हो चुकी हैं। शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी। उद्धव ठाकरे को शिंदे ने किनारे कर दिया और धाकड नेता शरद पवार को उनके ही भतीजे अजित दादा पवार ने धूल चटा दी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसके पास दूसरे दलों का मुँह ताकने के सिवाय कोई चारा नहीं रहा। रहे- सहे पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने पाला बदल लिया सो अलग!
अगर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ अजित दादा पवार की पत्नी चुनाव लड़ती हैं तो मुक़ाबला बहुत ही कांटेदार होगा। हो सकता है सुप्रिया सुले के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएँ। हालाँकि चुनावी चालें चली जा रही हैं। चाचा शरद पवार ने अजित पवार के खिलाफ उन्हीं के छोटे भाई से बयान दिलवाना शुरू कर दिया है। इस सब का अजित की छवि पर क्या और कैसा फ़र्क़ पड़ेगा, यह भविष्य ही बताएगा।
चुनाव आयोग ने तो शिंदे के गुट को ही असल शिवसेना बता दिया है लेकिन जनता किसे असली मानती है, यह चुनाव नतीजों से ही पता चल पाएगा। उद्धव के पास बाला साहेब ठाकरे की विरासत तो है लेकिन ज़मीन पर उनके कार्यकर्ता उनका कितना साथ देंगे यह चुनाव ही साबित करेंगे।