6 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
कुछ दिन पहले तक भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर लोकसभा चुनाव लड़ने की क़समें खा रहीं विपक्षी पार्टियां अब आपस में लड़ने लगी हैं। मायावती बहुत पहले एकता चलो रे का नारा दे चुकी हैं। अपनी कुर्सी बचाने के चक्कर में नीतीश कुमार विपक्षी एकता का झंडा बीच में ही फेंककर भाजपा से जा मिले हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राज्य में अकेले लड़ने का ऐलान तो कर ही चुकी हैं, लेकिन शुक्रवार को तो वे कांग्रेस पर टूट ही पड़ीं। उन्होंने कहा मुझे समझ में नहीं आता कि कांग्रेस को किस बात का अहंकार है। तीन सौ सीटों पर लड़कर वह चालीस सीटों पर भी जीत नहीं पाएगी, लेकिन घमंड इतना है कि सँभाले नहीं संभल रहा।
दरअसल, ममता का ग़ुस्सा जायज़ है। राहुल गांधी की न्याय यात्रा पश्चिम बंगाल से गुजर गई और कांग्रेसी भाई लोगों ने ममता बनर्जी को बताया तक नहीं। ममता का कहना है कि कांग्रेस का यही अहंकार है जिसके कारण वह अब वहाँ भी हारने लगी है, जहां अब तक जीतती आई थी।
अगर उसमें हिम्मत है और अपना अहंकार सच करके दिखाना चाहती है तो बनारस और प्रयागराज में भाजपा को हराकर दिखाए! वास्तव में हुआ यूँ कि ममता को कोई खबर कांग्रेस की तरफ़ से नहीं दी गई और न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी गुरुवार को मुर्शिदाबाद ( पश्चिम बंगाल) के मधुपुर गाँव में कुछ बीड़ी मज़दूरों से मिलने चले गए।
इससे ममता तमतमा गईं। उन्होंने राहुल का नाम लिए बग़ैर कहा- आजकल राजनीति में फ़ोटो शूट का नया चलन देखने को मिल रहा है। जो लोग कभी चाय की दुकान तक पर नहीं गए, वे अब बीड़ी कामगारों के साथ बैठकर फ़ोटो खिंचवाने में लगे हुए हैं।
उधर राहुल गांधी कह रहे हैं कि ममता जी से सीट शेयरिंग पर बात चल रही है, जबकि हक़ीक़त यह है कि बात कभी की टूट चुकी। कांग्रेस पश्चिम बंगाल में 12 सीटें माँग रही है जबकि ममता ने कांग्रेस को टका सा जवाब दे दिया है कि समझौता करना हो तो कीजिए, यहाँ आपको दो सीट से ज़्यादा मिलने वाली नहीं है।
आख़िर खींचतान के बाद ममता ने राज्य में अकेले लड़ने का फ़ैसला कर लिया। भाजपा के लिए विपक्षी पार्टियों के बीच के ये झगड़े बड़े मुफ़ीद रहेंगे। विपक्ष एक होकर चुनाव लड़ नहीं पाएगा। उसके वोट बिखर जाएँगे और जीत की संभावना भी।
उधर, झारखंड में झामुमो की सरकार तो किसी तरह बच गई है, लेकिन 5 फ़रवरी को बहुमत साबित करने की बड़ी चुनौती उसके सामने खड़ी है। अपने राज्य में अपनी सरकार के होते हुए झामुमो अपने विधायकों को हैदराबाद भेजने पर विवश हैं। टूट-फूट का डर उसे अब भी सता रहा है, जब उसकी सरकार वजूद में आ चुकी है। कुल मिलाकर विपक्ष के एक होने की तमाम संभावनाएँ ख़त्म होती जा रही हैं।