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नई दिल्ली. एक करीबी रिश्तेदार द्वारा दो लड़कियों के यौन उत्पीड़न के मामले को बीच-बचाव से सुलझाने के कदम पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे गंभीर प्रकृति के अपराधों को इस तरह हल नहीं किया जा सकता. हाईकोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इस तरह के जुर्म में उपयुक्त कानूनी कार्यवाही की जाए. कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता को जरूरी मदद, संरक्षण और न्याय मिले, जिनकी वे हकदार हैं.

हाईकोर्ट अपनी पत्नी से अलग रह रहे एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिन्होंने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत एक रिश्तेदार के खिलाफ अपनी शिकायत पर 7 साल बाद फिर से विचार करने का अदालत से अनुरोध किया है. याचिकाकर्ता की एक बेटी अब बालिग हो गई है जबकि दूसरी 17 साल की है.

जस्टिस शर्मा ने क्या कहा
जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने यौन उत्पीड़न के मामले को फिर से खोलने की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अदालत इस तरह की संवेदनहीनता नहीं दिखा सकती. व्यक्ति ने अपनी याचिका में कहा है कि निचली अदालत ने पहले उसके और उसकी पत्नी के बीच के विवादों को मध्यस्थता के लिए भेजा और फिर उनके बीच हुए समझौते के आधार पर मामले को बंद कर दिया.

अदालत ने कहा कि किसी जज के लिए यह उल्लेख करना अप्रिय है कि माता-पिता अपना हित साधने के लिए पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों का इस्तेमाल कर सकते हैं.

Tags: DELHI HIGH COURT, Rape Case

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