नई दिल्ली. वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने श्रीलंकाई द्वीप कच्चातिवु को लेकर चल रहे भारी विवाद के बीच मंगलवार को कहा कि मामले को अलग करने वाली बात यह है कि इसमें कोई लेन-देन नहीं था और जब कोई क्षेत्र शामिल होता है तो ऐसी स्थिति में यह एक सामान्य प्रथा है. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत ने बदले में कुछ भी लिए बिना ही श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप दे दिया था.
दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्रियों एम. करुणानिधि और जे. जयललिता के बीच हमेशा विवाद की जड़ रहा कच्चातिवु द्वीप (इस द्वीप को भारत सरकार ने 1974 में श्रीलंका को सौंप दिया था) का भावनात्मक मुद्दा लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर चर्चा में हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरठ में एक रैली में और सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को उठाया और कांग्रेस पर निशाना साधा.
2014 में, मुकुल रोहतगी, जो उस समय अटॉर्नी जनरल थे, ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि कच्चातिवु को फिर से हासिल करने के लिए, “हमें युद्ध में जाना होगा”. इसी बारे में जब उनसे पूछा गया, तो उन्होंने इसके पीछे की कहानी बताई, रोहतगी ने एनडीटीवी से कहा, “आम तौर पर हमारे बीच क्षेत्रीय आदान-प्रदान होता है. हमने अतीत में पाकिस्तान के साथ ऐसा किया था… 1958-1960 में हमने पाकिस्तान के साथ कुछ इस तरह की गतिविधियां की थीं क्योंकि वह आजादी के बाद का परिणाम था और यह समझ में आने योग्य था.”
उन्होंने आगे कहा, “मुझे याद है कि कुछ साल पहले, वर्तमान सरकार ने भी बांग्लादेश के साथ कुछ आदान-प्रदान किए थे. यह कुछ क्षेत्र थे. क्षेत्र का कुछ लेना-देना हो सकता है, लेकिन कच्चातिवु मामले में यह केवल देना था… द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया था. क्यों द्वीप सौंप दिया गया, बदले में हमें क्या मिला, ये ऐसे सवाल हैं जिनका कांग्रेस को जवाब देना चाहिए.”
पाक जलडमरूमध्य में 280 एकड़ में फैला कच्चातिवु द्वीप जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है. यह 1976 तक भारत का हिस्सा था. इसे इंदिरा गांधी की सरकार ने श्रीलंका को एक समझौते के तहत सौंप दिया था. आरटीआई से मिली जानकारी जिसे तमिलनाडु के भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने साझा किया, उसकी मानें तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1974 में श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ एक समझौता किया था.
इस समझौते के तहत श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप औपचारिक रूप से सौंप दिया गया था. इसको लेकर बताया गया कि तमिलनाडु में लोकसभा अभियान को देखते हुए इंदिरा गांधी ने यह समझौता किया था. ऐसे में संसद के आधिकारिक दस्तावेजों और रिकॉर्ड से यह स्पष्ट पता चलता है कि किस तरह भारत इस द्वीप पर अपने नियंत्रण की लड़ाई एक छोटे देश से हार गया.
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FIRST PUBLISHED : April 2, 2024, 23:27 IST