भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व पिछले कुछ समय से मध्यप्रदेश के जिस शहर के नेताओं को राजनीति के केंद्र में लाने की कवायद कर रहा है, वह उज्जैन है. उज्जैन से सात सांसद रहे सत्यनारायण जटिया को जब अगस्त 2022 में पार्टी के संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में शामिल किया गया, तो इस निर्णय से सभी चौंक गए थे. जटिया को संसदीय बोर्ड में शामिल करने के साथ ही तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बोर्ड से बाहर कर दिया गया था. यह मध्यप्रदेश की राजनीति में बड़े परिवर्तन का संकेत देने वाला निर्णय था. विधानसभा चुनाव के बाद उज्जैन के ही डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री बने. उज्जैन लोकसभा सीट भारतीय जनता पार्टी की सबसे मजबूत सीटों में मानी जाती है. इस सीट को पार्टी का गढ बनाने में जटिया की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उज्जैन से लगाव होने का कारण महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है. इस कारण उज्जैन की हर राजनीतिक गतिविधि पर उनकी नजर रहती है. अक्टूबर, 2022 में ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के विस्तारित क्षेत्र श्री महाकाल महालोक का लोकार्पण करने उज्जैन आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा में कहा था कि महाकाल की नगरी प्रलय के प्रहार से भी मुक्त है. उज्जैन भारत की आस्था का केंद्र है. यहां के कण-कण में अध्यात्म है. उज्जैन भारत की भव्यता के नए कालखंड का उद्घोष कर रहा है.
बलई बाहुल्य क्षेत्र में खटीक उम्मीदवार की जीत
लोकसभा के पिछले चुनाव में भाजपा के अनिल फिरोजिया की जीत हुई थी. उनका मुकाबला कांग्रेस के बाबूलाल मालवीय से हुआ था. मालवीय की हार लगभग तीन लाख पैंसठ हजार वोटों से हुई थी. यहां अनुसूचित जाति वर्ग की कुल आबादी 46 प्रतिशत से अधिक है. उज्जैन-आलोट संसदीय सीट का पूरा नाम है. इस संसदीय सीट पर जातिगत समीकरण बहुत कम चले हैं. कांग्रेस ने इस सीट से 1971 में बलाई समाज के बापूलाल मालवीय और 1996 में सिद्धनाथ परिहार को प्रत्याशी बनाया लेकिन दोनों ही चुनाव नहीं जीत पाए थे. दूसरी तरफ भाजपा ने 2014 में पहली बार यह फार्मूला अपनाया तो इसी जाति के प्रो.चिंतामणि मालवीय चुनाव जीत गए थे. यहां चुनाव में जीत जातिगत फैक्टर से नहीं बल्कि लहर, मुद्दों व व्यक्तिगत छवि से मिलती रही है. 1967 में सीट के आरक्षित होने के बाद से 2019 तक के चुनावों में कम जनसंख्या वाली पासी, खटिक व कोली जाति के प्रत्याशियों ने बलाई और रविदास बाहुल्य जाति के प्रत्याशियों को एक-दो नहीं पांच बार मात दी हैं. 57 साल तक तो गैर बलाई ही इस सीट से प्रतिनिधित्व करते आए हैं. एक अनुमान के अनुसार इस सीट पर लगभग दो लाख बलई समुदाय के लोग रहते हैं. डेढ़ लाख रविदास और इतने ही पाटीदार वोटर हैं. बागरी और बेरबा सामज भी दो लाख के करीब है.
कांग्रेस इस लोकसभा सीट पर कभी बड़ा चमत्कार नहीं कर सकी.
जनसंघ और भाजपा का गढ़ रही है उज्जैन सुरक्षित सीट
कांग्रेस इस लोकसभा सीट पर कभी बड़ा चमत्कार नहीं कर सकी. खासकर तब जब वह अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हो गई. 1967 में यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हुई थी. इससे पहले यह सामान्य वर्ग की सीट हुआ करती थी. जनसंघ ने वर्ष 1967 में यहां से पहला चुनाव जीता. हुकुमचंद कछवाय, फिर फूलचंद वर्मा और फिर डा. सत्यनारायण जटिया ने चुनाव जीता. कांग्रेस को वर्ष 1984 में इस सीट को जीतने का अवसर इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति के कारण मिला, जबकि 2009 के लोकसभा चुनाव में बलई वोटों का धुर्वीकरण कांग्रेस उम्मीदवार प्रेमचंद्र गुड्डु के पक्ष में हो जाने के चलते मिल गया. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बलई समाज के प्रोफेसर चिंतामणि मालवीय के जरिए सफलता हासिल की थी. वर्ष 2019 में चुनाव जीते अनिल फिरोजिया खटीक हैं.
कांग्रेस को नहीं मिलती लगातार दूसरी जीत
इस लोकसभा सीट पर एक किवदंती भी कांग्रेस उम्मीदवार को लेकर चलती है. कहा जाता है कि कांग्रेस कोई भी उम्मीदवार दोबारा चुनाव नहीं जीत पाता. कांग्रेस ने दुर्गादास सूर्यवंशी व प्रेमचंद गुड्डू को दोबारा टिकट देकर विश्वास जताया, लेकिन वह जीत नहीं सके. इसके उलट भाजपा ने अपने एक ही प्रत्याशी सत्यनारायण जटिया पर एक नहीं सात दफे विश्वास जताया और वे छह बार चुनाव भी जीते. हालांकि डॉ. जटिया जैसा विश्वास भाजपा ने अपने किसी और प्रत्याशी पर नहीं जताया. भाजपा के सत्यनारायण जटिया को छोड़ दे तो ऐसा कोई प्रत्याशी नहीं है, जिसने दूसरी बार चुनाव लड़ा और सीट पर कब्जा बकरार रखा. चिंतामणि मालवीय को भी पार्टी ने दोबारा टिकट नहीं दिया.
सांसद अनिल फिरोजिया
अनिल फिरोजिया को मिलेगा दोबारा मौका?
यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि पार्टी निकट भविष्य में होने वाले लोकसभा के चुनाव में अनिल फिरोजिया को ही मैदान में उतारेगी. संभव है कि निमाड-मालवा के जातिगत समीकरणों को साधने के लिए बलई या रविदास सामज के खाते में टिकट चली जाए. इस बार तो मुख्यमंत्री भी उज्जैन से ही है. उनकी पसंद- नापसंद का ध्यान भी पार्टी रख सकती है. सत्यनारायण जटिया की राय भी बेहद महत्वपूर्ण रहने वाली है. संसदीय क्षेत्र की आठ सीटों में से छह भाजपा के पास हैं. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लोकसभा चुनाव में सीट को रिकॉर्ड वोट से जीतने के लिए कई विकास योजनाएं भी शुरू की हैं. 2028 में होने वाले सिंहस्थ की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं.
अनिल फिरोजिया ने पूरा किया था चैलेंज
पिछले पांच साल में उज्जैन के भाजपा सांसद अनिल फिरोजिया दो बार सबसे ज्यादा चर्चा में रहे. पहली बार उनकी चर्चा जुलाई 2022 में हुई. वे अपने परिवार के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने उनके आवास पर गए थे. उस वक्त उनकी बेटी आहना ने प्रधानमंत्री से कहा कि मैं अपको जानती हूं,आप लोकसभा में काम करते हैं. फिरोजिया दूसरी बार नितिन गडकरी के चैलेंज को स्वीकार कर उसे पूरा करने के कारण चर्चा में आए. गडकरी ने फिरोजिया को वजन कम करने का चैलेंज दिया था. साथ ही यह कहा था कि एक किलो वजन कम करने पर वे उज्जैन के विकास के लिए एक हजार करोड़ रुपए की योजना स्वीकृत करेंगे. फिरोजिया ने 32 किलो वजन कम किया. गडकरी ने तत्काल 2300 करोड़ की योजना मंजूर कर दिए थे. फिरोजिया ने अपना वजन कम करने के लिए नियमित एक्ससाइज के अलावा डाइट में बदलाव किया था.
ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर
राजनीतिक पृष्ठभूमि से जुड़ा है अनिल फिरोजिया का परिवार
अनिल फिरोजिय की शिक्षा ज्यादा नहीं है. वे सिर्फ बारहवीं पास हैं. परिवार राजनीति में था. इस कारण उन्होंने भी राजनीति को ही पेशा बना लिया. उनके पिता स्वर्गीय भूरेलाल जी फिरोजिया जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. वे मध्य प्रदेश के गोहद (भिंड) से एक बार (1977 में जनता पार्टी की टिकट पर) और आगर (आगर-मालवा) से दो बार (1967 में जनसंघ एवं 1980 में भाजपा की टिकट पर) विधायक निर्वाचित हुए थे. वह भी तब, जब तक भाजपा मुख्य धारा की पार्टी नहीं बनी थी.पिता इमरजेंसी में जेल भी गए. अनिल फिरोजिया की बड़ी बहन श्रीमती रेखा रत्नाकर भी आगर (आगर-मालवा) से विधायक रह चुकी हैं.
आय का जरिया भी समाज सेवा और राजनीति
उज्जैन के सांसद अनिल फिरोजिया के व्यापार,व्यवसाय सामने नहीं है. उनकी आय का जरिया स्पष्ट नहीं है. पिछले लोकसभा चुनाव में उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए संपत्ति के विवरण में पत्नी संध्या की भी चल-अचल संपत्ति बताई गई है. फिरोजिया के पास कुल चल संपत्ति 62 लाख 99 हजार 759 रुपए की है तो पत्नी संध्या के पास 47 लाख 30 हजार 114 रुपए की है. पुत्री प्रियांशी के पास 5 लाख 25 हजार की तो दूसरी पुत्री अहाना के पास 2 लाख 63 हजार 064 रुपए की चल संपत्ति है, जिसमें सोने-चांदी के गहने हैं. वर्तमान में फिरोजिया के पास 75 लाख 90 हजार रुपए की अचल संपत्ति है, जबकि पत्नी के नाम 70.10 लाख रुपए की संपत्ति है. फिरोजिया ने अपने ऊपर 32 लाख का कर्जा भी बताया था.
पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम
वर्ष 2019 — अनिल फिरोजिया (जीते)– भाजपा – वोट मिले 791663 विजयी — बाबूलाल मालवीय (हारे)-कांग्रेस – वोट मिले – 426026
वर्ष 2014 — प्रोफेसर चिंतामणि मालवीय (जीते) – भाजपा- वोट मिले 641101 विजयी — प्रेमचंद्र गुड्डू (हारे)- कांग्रेस- वोट मिले 331438
वर्ष 2009 — प्रेमचंद्र गुड्डू (जीते) — कांग्रेस- वोट मिले – 326905 विजयी — सत्यनारायण जटिया (हारे)- वोट मिले – 311064
वर्ष 2004 — सत्यनारायण जटिया (जीते)- भाजपा- वोट मिले – 369090 विजयी –प्रेमचंद्र गुड्डू (हारे) – कांग्रेस- वोट मिले- 299034
वर्ष 1999 — सत्यनारायण जटिया- भाजपा- (जीते)- वोट मिले- 360103 विजयी — तुलसीराम सिलावट (हारे)- कांग्रेस- वोट मिले- 292065
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FIRST PUBLISHED : January 31, 2024, 15:51 IST