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क्लाइमेट चेंज पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्या कहा, तारीफ करते नहीं थक रहे एक्सपर्ट

नई दिल्ली. नीति विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा कि प्रीम कोर्ट द्वारा जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अधिकार को मौलिक मानवाधिकार के रूप में मान्यता दिया जाना, इस महत्वपूर्ण विषय पर गंभीर विमर्श को बढ़ावा देगा. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए भारत का स्वच्छ ऊर्जा की ओर परिवर्तन से पर्यावरणीय अन्याय नहीं होना चाहिए.

शीर्ष कोर्ट ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के दायरे का विस्तार करते हुए ‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार’ को शामिल किया. शीर्ष अदालत ने यह फैसला लुप्तप्राय पक्षी की प्रजाति ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण की आवश्यकता के बारे में दाखिल एक याचिका पर दिया.

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) विशेष रूप से राजस्थान और गुजरात में पाए जाते हैं, और उनकी संख्या में चिंताजनक कमी का कारण उनके निवास स्थान के पास सौर संयंत्रों सहित ओवरहेड बिजली पारेषण लाइनों से उनका अकसर टकराना है.

शीर्ष अदालत ने अप्रैल 2021 के पहले के आदेश को वापस ले लिया, जिसमें दोनों राज्यों में 80,000 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत करने की आवश्यकता थी. पीठ ने राजस्थान और गुजरात राज्य में लुप्तप्राय पक्षी ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ के संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा बुनियादी ढांचे के बीच संतुलन के उपाय सुझाने के लिए एक समिति का गठन किया है.

जलवायु कार्यकर्ता हरजीत सिंह ने कहा कि फैसला इस बात पर जोर देता है कि नागरिकों के पास जलवायु आपातकाल के प्रतिकूल प्रभावों से सुरक्षित जीवन का एक अपरिहार्य अधिकार है, भारत का स्वच्छ ऊर्जा, विशेष रूप से सौर ऊर्जा में परिवर्तन के दौरान ‘जीवाश्म ईंधन में निहित पर्यावरणीय अन्याय की विरासत को दोहराया नहीं जाना चाहिए.

एशियन सोसाइटी फॉर एकेडमिक रिसर्च में राज्य जलवायु कार्रवाई कार्यक्रम की प्रमुख प्रिया पिल्लई ने कहा कि कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं हाशिए पर रहने वाले समुदायों को प्रभावित कर रही हैं जो प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं.

उन्होंने कहा कि केवल प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों पर निर्भर रहने के बजाय प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व अधिक महत्वपूर्ण है और साथ ही प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए नीतिगत बदलावों की वकालत की.

पिल्लई ने कहा कि कर्नाटक और तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा के सामाजिक-पारिस्थितिक प्रभावों पर उनके अनुसंधान में खुलासा हुआ कि छोटे किसानों, भूमिहीन मजदूरों, ग्रामीण समुदायों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, विशेष रूप से महिलाओं पर जिन्हें सौर ऊर्जा संयंत्र विकास से जुड़े भूमि-अधिग्रहण के मुद्दों के कारण विस्थापन या आवश्यक संसाधनों तक पहुंच में कमी का सामना करना पड़ रहा है.

सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में वरिष्ठ रेजिडेंट फेलो और जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र टीम के प्रमुख देबादित्यो सिन्हा ने कहा कि पर्यावरण अधिकारों के लिए इस तरह की मान्यता सार्वजनिक चिंता के मामलों को इंगित करती है और मौजूदा कानूनों और नीतियों में कमियों को उजागर करती है.

उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा ‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध अधिकार’ की मान्यता से एक उल्लेखनीय कानूनी मिसाल कायम होने की उम्मीद है. इससे जलवायु संकट के इर्द-गिर्द पर्यावरणीय मुद्दों पर सार्वजनिक चर्चाओं पर असर पड़ने की संभावना है और आने वाले वर्षों में कानून और नीतियां आकार ले सकती हैं.

Tags: Climate Change, Supreme Court

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